Munawwar Rana Shayari and Best Famous Ghazlas In Hindi
Munawwar Rana is one of the best
shayar of Urdu language. However, he is most popular not only urdu language but
also more popular in Hindi Language. He was born in 26 November 1952 ray Bareli
Uttar Pradesh. He wrote shahdaba and awarded
with sahitya academy. His family faced partition of indopak. Their more
relative leave india and stablish in Pakistan but his father made mood live their
native county.
Munawwar Rana take all starting
knowledge in Kolkata College. Their ghazal and shayari is famous in all age
peoples. They belong to any cast and religion. He must like Munawwar Rana ghazals
and shayari. He likes by not as an urdu poet but also Hindi.
He always say that once he went
to Pakistan for any mushaiya but some incident happen there. Someone offered
him some more money for his program but he did not accepted that, came from
there, and wrote most popular collect of shayari Muhajir Nama.
Muhajir Nama is an amazing
ghazal composed by Munawwar Rana on the expressions of the 1947 India-Pakistan
segment. It is an extremely long ghazal with 504 lions. What is the pity of
leaving your property, your home, your kin, it has been communicated with
incredible devotion in this ghazal.
Personally if I talk about
myself. I like it so much. People who live out of his native. They must like
Muhajir Nama. Every line of this shayari I like so much. If we talk some
special line then I want to say some line
मुहाजिर हैं मगर हम एक दुनिया छोड़ आए हैं,
तुम्हारे पास जितना है हम उतना छोड़ आए हैं ।
Muhaajir
hain magar ham ek duniya chhod aae hain,
Tumhaare
paas jitana hai ham utana chhod aae hain .
Munawwar Rana Maa Shayari
Munawwar Rana Maa Poetry is very
popular. If you did not read that no problem. Specially mother day when you see
most of the people WhatsApp status on maa. You must find Munawwar Rana maa
shayari. This is show that most of people who does not know that who is
munawwar Rana but they are familiar with his Maa shayari. Munawwar Rana Maa
poetry is more famous than his name. You only see this kind of accident happen with
some rare people. Ram name is more popular and great as Ram. You will must see
some these kinds of qualities with Munawwar Rana Maa poetry.
किसी को घर मिला हिस्से में या कोई
दुकाँ आई,
मैं घर में सब से छोटा था मेरे हिस्से
में माँ आई।
kisee ko ghar mila hisse mein ya
koee dukaan aaee,
main ghar mein sab se chhota tha
mere hisse mein maan aaee.
These kinds of line you must
like. So you see many gazals and poetry of Munawwar rana under this blog
मिट्टी में मिला दे कि जुदा हो नहीं सकता / Mittee mein mila de ki juda ho nahin sakta
मिट्टी में मिला दे कि जुदा हो नहीं सकताअब इससे ज़ियादा मैं तिरा हो नहीं सकता
mittee mein mila de ki juda ho nahin sakataab isase ziyaada main tira nahin ho sakata
दहलीज़ पे रख दी हैं किसी शख़्स ने आँखेंरौशन कभी इतना तो दिया हो नहीं सकता
dahaleez pe rakh dee hain kisee shakhs ne aankhenraushan kabhee itna to diya nahin ja saka
बस तू मिरी आवाज़ में आवाज़ मिला देफिर देख कि इस शहर में क्या हो नहीं सकता
bas too miree aavaaz mein aavaaz mila dephir dekh raha hoon ki is shahar mein kya nahin ho sakata hai
ऎ मौत मुझे तूने मुसीबत से निकालासय्याद समझता था रिहा हो नहीं सकता
ai mujhe maut se pareshaan karane ke lie nikaala gayasayyaad sochata tha ki riha nahin ho sakate
इस ख़ाकबदन को कभी पहुँचा दे वहाँ भीक्या इतना करम बादे-सबा हो नहीं सकता
is khaakabandan ko kabhee kabhee de vahaan bheekya itana karam baade-saba nahin ho sakata
पेशानी को सजदे भी अता कर मिरे मौलाआँखों से तो यह क़र्ज़ अदा हो नहीं सकता
peshaanee ko sajade bhee ata kar mire maulaaankhon se to yah qarz ada nahin ho sakata
मुहाजिरनामा / मुनव्वर राना ग़ज़ल/शायरी Quotes Full Ghazals in Hindi
Muhaajiranaama / Munavvar Raana ghazal Full Ghazals
अगर दौलत से ही सब क़द का अंदाज़ा लगाते हैं / मुनव्वर राना ग़ज़ल/शायरी
तो फिर ऐ मुफ़लिसी हम दाँव पर कासा लगाते हैं
जो अपने सर के नीचे हाथ का तकिया लगाते हैं
हमारा सानहा है ये कि इस दौरे हुकूमत में
शिकारी के लिए जंगल में हम हाँका लगाते हैं
वो शायर हों कि आलिम हों कि ताजिर या लुटेरे हों
सियासत वो जुआ है जिसमें सब पैसा लगाते हैं
उगा रक्खे हैं जंगल नफ़रतों के सारी बस्ती में
मगर गमले में मीठी नीम नीम का पौदा लगाते हैं
ज़्यादा देर तक मुर्दे कभी रक्खे नहीं जाते
शराफ़त के जनाज़े को चलो काँधा लगाते हैं
ग़ज़ल की सल्तनत पर आजतक क़ब्ज़ा हमारा है
हम अपने नाम के आगे अभी राना लगाते हैं
न मैं कंघी बनाता हूँ न मैं चोटी
बनाता हूँ / मुनव्वर राना ग़ज़ल/शायरी
न मैं कंघी बनाता हूँ न मैं चोटी
बनाता हूँ
ग़ज़ल में आपबीती को मैं जगबीती बनाता हूँ
ग़ज़ल वह सिन्फ़-ए-नाज़ुक़ है जिसे
अपनी रफ़ाक़त से
वो महबूबा बना लेता है मैं बेटी बनाता हूँ
हुकूमत का हर एक इनआम है बंदूकसाज़ी
पर
मुझे कैसे मिलेगा मैं तो बैसाखी बनाता हूँ
मेरे आँगन की कलियों को तमन्ना
शाहज़ादों की
मगर मेरी मुसीबत है कि मैं बीड़ी बनाता हूँ
सज़ा कितनी बड़ी है गाँव से बाहर
निकलने की
मैं मिट्टी गूँधता था अब डबल रोटी बनाता हूँ
वज़ारत चंद घंटों की महल मीनार से
ऊँचा
मैं औरंगज़ेब हूँ अपने लिए खिचड़ी बनाता हूँ
बस इतनी इल्तिजा है तुम इसे गुजरात मत
करना
तुम्हें इस मुल्क का मालिक मैं जीते-जी बनाता हूँ
मुझे इस शहर की सब लड़कियाँ आदाब करती
हैं
मैं बच्चों की कलाई के लिए राखी बनाता हूँ
तुझे ऐ ज़िन्दगी अब क़ैदख़ाने से
गुज़रना है
तुझे मैँ इस लिए दुख-दर्द का आदी बनाता हूँ
मैं अपने गाँव का मुखिया भी हूँ
बच्चों का क़ातिल भी
जलाकर दूध कुछ लोगों की ख़ातिर घी
बनाता हूँ
हाँ इजाज़त है अगर कोई कहानी और है /
मुनव्वर राना ग़ज़ल/शायरी
हाँ इजाज़त है अगर कोई कहानी और है
इन कटोरों में अभी थोड़ा सा पानी और है
मज़हबी मज़दूर सब बैठे हैं इनको काम
दो
इक इमारत शहर में काफी पुरानी और है
ख़ामुशी कब चीख़ बन जाये किसे मालूम
है
ज़ुल्म कर लो जब तलक ये बेज़बानी और है
ख़ुश्क पत्ते आँख में चुभते हैं
काँटों की तरह
दश्त में फिरना अलग है बाग़बानी और है
फिर वही उकताहटें होंगी बदन चौपाल में
उम्र के क़िस्से में थोड़ी-सी जवानी और है
बस इसी अहसास की शिद्दत ने बूढ़ा कर
दिया
टूटे-फूटे घर में इक लड़की सयानी और
है
उम्मीद भी किरदार पे पूरी नहीं उतरी /
मुनव्वर राना ग़ज़ल/शायरी
उम्मीद भी किरदार पे पूरी नहीं उतरी
ये शब दिले-बीमार पे पूरी नहीं उतरी
क्या ख़ौफ़ का मंज़र था तेरे शहर में कल
रात
सच्चाई भी अख़बार में पूरी नहीं उतरी
तस्वीर में एक रंग अभी छूट रहा है
शोख़ी अभी रुख़सार[4]पे पूरी नहीं उतरी
पर[5]उसके कहीं,जिस्म कहीं, ख़ुद वो कहीं है
चिड़िया कभी मीनार पे पूरी नहीं उतरी
एक तेरे न रहने से बदल जाता है सब कुछ
कल धूप भी दीवार पे पूरी नहीं उतरी
मैं दुनिया के मेयार [6]पे पूरा नहीं उतरा
दुनिया मेरे मेयार पे पूरी नहीं उतरी
उड़के यूँ छत से कबूतर मेरे सब जाते
हैं / मुनव्वर राना ग़ज़ल/शायरी
उड़के यूँ छत से कबूतर मेरे सब जाते
हैं
जैसे इस मुल्क से मज़दूर अरब जाते हैं
हमने बाज़ार में देखे हैं घरेलू चेहरे
मुफ़लिसी [1]तुझसे बड़े लोग भी दब जाते हैं
कौन हँसते हुए हिजरत [2]पे हुआ है राज़ी[3]
लोग आसानी से घर छोड़ के कब जाते हैं
और कुछ रोज़ के मेहमान हैं हम लोग
यहाँ
यार बेकार हमें छोड़ के अब जाते हैं
लोग मशकूक [4]निगाहों [5]से हमें देखते हैं
रात को देर से घर लौट के जब जाते हैं
बस इतनी बात पर उसने हमें बलवाई
लिक्खा है / मुनव्वर राना ग़ज़ल/शायरी
बस इतनी बात पर उसने हमें बलवाई
लिक्खा है
हमारे घर के बरतन पे आई.एस.आई लिक्खा है
यह मुमकिन ही नहीं छेड़ूँ न तुझको
रास्ता चलते
तुझे ऐ मौत मैंने उम्र भर भौजाई लिक्खा है
मियाँ मसनद नशीनी मुफ़्त में कब हाथ
आती है
दही को दूध लिक्खा दूध को बालाई लिक्खा है
कई दिन हो गए सल्फ़ास खा कर मरने वाली
को
मगर उसकी हथेली पर अभी शहनाई लिक्खा है
हमारे मुल्क में इन्सान अब घर में
नहीं रहते
कहीं हिन्दू कहीं मुस्लिम कहीं ईसाई लिक्खा है
यह दुख शायद हमारी ज़िन्दगी के साथ
जाएगा
कि जो दिल पर लगा है तीर उसपर भाई
लिक्खा है
क़सम देता है बच्चों की बहाने से
बुलाता है / मुनव्वर राना ग़ज़ल/शायरी
क़सम देता है बच्चों की बहाने से
बुलाता है
धुआँ चिमनी का हमको कारख़ाने से
बुलाता है
किसी दिन आँसुओ! वीरान आँखों में भी आ
जाओ
ये रेगिस्तान बादल को ज़माने से
बुलाता है
मैं उस मौसम में भी तन्हा रहा हूँ जब
सदा देकर
परिन्दे को परिन्दा आशियाने से बुलाता
है
मैं उसकी चाहतों को नाम कोई दे नहीं
सकता
कि जाने से बिगड़ता है न जाने से
बुलाता है
बुलन्दी देर तक किस शख़्स के हिस्से
में रहती है / मुनव्वर राना ग़ज़ल/शायरी
बुलन्दी देर तक किस शख़्स के हिस्से
में रहती है
बहुत ऊँची इमारत हर घड़ी ख़तरे में
रहती है
बहुत जी चाहता है क़ैद-ए-जाँ से हम
निकल जाएँ
तुम्हारी याद भी लेकिन इसी मलबे में
रहती है
यह ऐसा क़र्ज़ है जो मैं अदा कर ही
नहीं सकता
मैं जब तक घर न लौटूँ मेरी माँ सजदे
में रहती है
अमीरी रेशम-ओ-कमख़्वाब में नंगी नज़र
आई
ग़रीबी शान से इक टाट के पर्दे में
रहती है
मैं इन्साँ हूँ बहक जाना मेरी फ़ितरत
में शामिल है
हवा भी उसको छू कर देर तक नश्शे में
रहती है
मुहब्बत में परखने जाँचने से फ़ायदा
क्या है
कमी थोड़ी-बहुत हर एक के शजरे में
रहती है
ये अपने आप को तक़्सीम कर लेता है
सूबों में
ख़राबी बस यही हर मुल्क के नक़्शे में
रहती है.
मियाँ मैं शेर हूँ शेरों की गुर्राहट
नहीं जाती / मुनव्वर राना ग़ज़ल/शायरी
मियाँ मैं शेर हूँ शेरों की गुर्राहट
नहीं जाती
मैं लहजा नर्म भी कर लूँ तो झुँझलाहट
नहीं जाती
मैं इक दिन बेख़याली में कहीं सच बोल
बैठा था
मैं कोशिश कर चुका हूँ मुँह की
कड़ुवाहट नहीं जाती
जहाँ मैं हूँ वहीं आवाज़ देना जुर्म
ठहरा है
जहाँ वो है वहाँ तक पाँव की आहट नहीं
जाती
मोहब्बत का ये जज़बा जब ख़ुदा क्जी
देन है भाई
तो मेरे रास्ते से क्यों ये दुनिया हट
नहीं जाती
वो मुझसे बेतकल्लुफ़ हो के मिलता है
मगर ‘राना’
न जाने क्यों मेरे चेहरे से घबराहट
नहीं जाती.
अना की मोहनी सूरत बिगाड़ देती है /
मुनव्वर राना ग़ज़ल/शायरी
अना[1]की मोहनी[2]सूरत बिगाड़ देती
है
बड़े-बड़ों को ज़रूरत बिगाड़ देती है
किसी भी शहर के क़ातिल बुरे नहीं होते
दुलार कर के हुक़ूमत[3]बिगाड़ देती है
इसीलिए तो मैं शोहरत[4]से बच के चलता हूँ
शरीफ़ लोगों को औरत बिगाड़ देती है
मेरी मज़लूमियत पर ख़ून पत्थर से
निकलता है / मुनव्वर राना ग़ज़ल/शायरी
मेरी मज़लूमियत पर ख़ून पत्थर से
निकलता है
मगर दुनिया समझती है मेरे सर से
निकलता है
ये सच है चारपाई साँप से महफ़ूज़[1]रखती है
मगर जब वक़्त आ जाए तो छप्पर से
निकलता है
हमें बच्चों का मुस्तक़बिल[2]लिए फिरता है
सड़कों पर
नहीं तो गर्मियों में कब कोई घर से
निकलता है
फ़रिश्ते आ के उनके जिस्म पर झाड़ू
लगाते हैं / मुनव्वर राना ग़ज़ल/शायरी
फ़रिश्ते [1]आकर उनके जिस्म पर
ख़ुश्बू लगाते हैं
वो बच्चे रेल के डिब्बों में जो झाड़ू
लगाते हैं
अँधेरी रात में अक्सर सुनहरी मिशअलें[2]ले कर
परिंदों की मुसीबत का पता जुगनू लगाते
हैं
दिलों का हाल आसनी से कब मालूम होता
है
कि पेशानी[3]पे चंदन तो सभी
साधू लगाते हैं
ते माना आपको शोले बुझाने में महारत
है
मगर वो आग जो मज़लूम[4]के आँसू लगाते हैं
किसी के पाँव की आहट पे दिल ऐसे उछलता
है
छलाँगे जंगलों में जिस तरह आहू [5]लगाते हैं
बहुत मुमकिन[6]है अब मेरा चमन
वीरान हो जाए
सियासत[7]के शजर [8]पर घोंसले उल्लू
लगाते हैं
उदास रहने को अच्छा नहीं बताता है /
मुनव्वर राना ग़ज़ल/शायरी
उदास रहने को अच्छा नहीं बताता है
कोई भी ज़ह्र[1]को मीठा नहीं बताता
है
कल अपने आपको देखा था माँ की आँखों
में
ये आईना[2]हमें बूढ़ा नहीं
बताता है
हमारी ज़िन्दगी का इस तरह हर साल कटता
है / मुनव्वर राना ग़ज़ल/शायरी
हमारी ज़िन्दगी का इस तरह हर साल कटता
है
कभी गाड़ी पलटती है कभी तिरपाल कटता
है
दिखाते हैं पड़ोसी मुल्क आँखें तो
दिखाने दो
कहीं बच्चों के बोसे से भी माँ का गाल
कटता है
इसी उलझन में अकसर रात आँखों में
गुज़रती है
बरेली को बचाते हैं तो नैनीताल कटता
है
कभी रातों के सन्नाटे में भी निकला
करो घर से
कभी देखा करो गाड़ी से कैसे माल कटता
है
सियासी वार भी तलवार से कुछ कम नहीं
होता
कभी कश्मीर जाता है कभी बंगाल कटता है
.
घर में रहते हुए ग़ैरों की तरह होती हैं / मुनव्वर राना ग़ज़ल/शायरी
घर में रहते हुए ग़ैरों की तरह होती
हैं
बेटियाँ धान के पौधों की तरह होती हैं
उड़के एक रोज़ बड़ी दूर चली जाती हैं
घर की शाख़ों पे ये चिड़ियों की तरह
होती हैं
सहमी-सहमी हुई रहती हैं मकाने दिल में
आरज़ूएँ भी ग़रीबों की तरह होती हैं
टूटकर ये भी बिखर जाती हैं एक लम्हे
में
कुछ उम्मीदें भी घरौंदों की तरह होती
हैं
आपको देखकर जिस वक़्त पलटती है नज़र
मेरी आँखें , मेरी आँखों की तरह
होती हैं
बाप का रुत्बा भी कुछ कम नहीं होता
लेकिन
जितनी माँएँ हैं फ़रिश्तों की तरह
होती हैं
अलमारी से ख़त उसके पुराने निकल आये / मुनव्वर राना ग़ज़ल/शायरी
अलमारी से ख़त उसके पुराने निकल आए
फिर से मेरे चेहरे पे ये दाने निकल आए
माँ बैठ के तकती थी जहाँ से मेरा
रस्ता
मिट्टी के हटाते ही ख़ज़ाने निकल आए
मुमकिन[1]है हमें गाँव भी
पहचान न पाए
बचपन में ही हम घर से कमाने निकल आए
बोसीदा[2]किताबों के वरक़[3]जैसे हैं हम लोग
जब हुक्म दिया हमको कमाने निकल आए
ऐ रेत के ज़र्रे [4]तेरा एहसान बहुत है
आँखों को भिगोने के बहाने निकल आए
अब तेरे बुलाने से भी आ नहीं सकते
हम तुझसे बहुत आगे ज़माने निकल आए
एक ख़ौफ़-सा रहता है मेरे दिल में
हमेशा
किस घर से तेरी याद न जाने निकल आए
लिपट जाता हूँ माँ से और मौसी
मुस्कुराती है / मुनव्वर राना ग़ज़ल/शायरी
लिपट जाता हूँ माँ से और मौसी
मुस्कुराती है
मैं उर्दू में ग़ज़ल कहता हूँ हिन्दी
मुस्कुराती है
उछलते खेलते बचपन में बेटा ढूँढती
होगी
तभी तो देख कर पोते को दादी
मुस्कुराती है
तभी जा कर कहीं माँ-बाप को कुछ चैन
पड़ता है
कि जब ससुराल से घर आ के बेटी
मुस्कुराती है
चमन में सुबह का मंज़र बड़ा दिलचस्प
होता है
कली जब सो के उठती है तो तितली
मुस्कुराती है
हमें ऐ ज़िन्दगी तुझ पर हमेशा रश्क आता
है
मसायल से घिरी रहती है फिर भी
मुस्कुराती है
बड़ा गहरा तअल्लुक़ है सियासत से
तबाही का
कोई भी शहर जलता है तो दिल्ली
मुस्कुराती है.
मुहब्बत करने वालों में ये झगड़ा डाल
देती है/ मुनव्वर राना ग़ज़ल/शायरी
मुहब्बत करने वालों में ये झगड़ा डाल
देती है
सियासत दोस्ती की जड़ में मट्ठा डाल
देती है
तवायफ़ की तरह अपने ग़लत कामों के
चेहरे पर
हुकूमत मंदिरों-मस्जिद का पर्दा डाल
देती है
हुकूमत मुँह-भराई के हुनर से ख़ूब
वाक़िफ़ है
ये हर कुत्ते आगे शाही टुकड़ा डाल
देती है
कहाँ की हिजरतें कैसा सफ़र कैसा जुदा
होना
किसी की चाह पैरों में दुपट्टा डाल
देती है
ये चिड़िया भी मेरी बेटी से कितनी
मिलती-जुलती है
कहीं भी शाख़े-गुल देखे तो झूला डाल
देती है
भटकती है हवस दिन-रात सोने की दुकानों
में
ग़रीबी कान छिदवाती है तिनका डाल देती
है
हसद की आग में जलती है सारी रात वह औरत
मगर सौतन के आगे अपना जूठा डाल देती
है
दुनिया तेरी रौनक़ से मैं अब ऊब रहा
हूँ / मुनव्वर राना ग़ज़ल/शायरी
दुनिया तेरी रौनक़ से मैं अब ऊब रहा
हूँ
तू चाँद मुझे कहती थी मैं डूब रहा हूँ
अब कोई शनासा भी दिखाई नहीं देता
बरसों मैं इसी शहर का महबूब रहा हूँ
मैं ख़्वाब नहीं आपकी आँखों की तरह था
मैं आपका लहजा नहीं अस्लोब रहा हूँ
इस शहर के पत्थर भी गवाही मेरी देंगे
सहरा भी बता देगा कि मजज़ूब रहा हूँ
रुसवाई मेरे नाम से मंसूब रही है
मैं ख़ुद कहाँ रुसवाई से मंसूब रहा
हूँ
दुनिया मुझे साहिल से खड़ी देख रही है
मैं एक जज़ीरे की तरह डूब रहा हूँ
फेंक आए थे मुझको भी मेरे भाई कुएँ
में
मैं सब्र में भी हज़रते अय्यूब रहा
हूँ
सच्चाई तो ये है कि तेरे
क़ुर्रअ-ए-दिल में
ऐसा भी ज़माना था कि मैं ख़ूब रहा हूँ
शोहरत मुझे मिलती है तो चुपचाप खड़ी
रह
रुसवाई, मैं तुझसे भी तो मंसूब रहा हूँ
जब भी कश्ती मेरी सैलाब में आ जाती
है/ मुनव्वर राना ग़ज़ल/शायरी
जब भी कश्ती मेरी सैलाब में आ जाती है
माँ दुआ करती हुई ख़्वाब में आ जाती
है
रोज़ मैं अपने लहू से उसे ख़त लिखता
हूँ
रोज़ उँगली मेरी तेज़ाब में आ जाती है
दिल की गलियों से तेरी याद निकलती ही
नहीं
सोहनी फिर इसी पंजाब में आ जाती है
रात भर जागते रहने का सिला है शायद
तेरी तस्वीर-सी महताब में आ जाती है
एक कमरे में बसर करता है सारा कुनबा
सारी दुनिया दिल-ए-बेताब में आ जाती
है
ज़िन्दगी तू भी भिखारिन की रिदा ओढ़े
हुए
कूचा-ए-रेशम-ओ-कमख़्वाब में आ जाती है
दुख किसी का हो छलक उठती हैं मेरी
आँखें
सारी मिट्टी मेरे तालाब में आ जाती
है.
बुलन्दी देर तक किस शख़्स के हिस्से
में रहती है / मुनव्वर राना ग़ज़ल/शायरी
बुलन्दी देर तक किस शख़्स के हिस्से
में रहती है
बहुत ऊँची इमारत हर घड़ी ख़तरे में
रहती है
बहुत जी चाहता है क़ैद-ए-जाँ से हम
निकल जाएँ
तुम्हारी याद भी लेकिन इसी मलबे में
रहती है
यह ऐसा क़र्ज़ है जो मैं अदा कर ही
नहीं सकता
मैं जब तक घर न लौटूँ मेरी माँ सजदे
में रहती है
अमीरी रेशम-ओ-कमख़्वाब में नंगी नज़र
आई
ग़रीबी शान से इक टाट के पर्दे में
रहती है
मैं इन्साँ हूँ बहक जाना मेरी फ़ितरत
में शामिल है
हवा भी उसको छू कर देर तक नश्शे में
रहती है
मुहब्बत में परखने जाँचने से फ़ायदा
क्या है
कमी थोड़ी-बहुत हर एक के शजरे में
रहती है
ये अपने आप को तक़्सीम कर लेता है
सूबों में
ख़राबी बस यही हर मुल्क के नक़्शे में
रहती है.
बहुत पानी बरसता है तो मिट्टी बैठ
जाती है / मुनव्वर राना ग़ज़ल/शायरी
बहुत पानी बरसता है तो मिट्टी बैठ
जाती है
न रोया कर बहुत रोने से छाती बैठ जाती
है
यही मौसम था जब नंगे बदन छत पर टहलते
थे
यही मौसम है अब सीने में सर्दी बैठ
जाती है
चलो माना कि शहनाई मसर्रत की निशानी
है
मगर बह शख़्स जिसकी आके बेटी बैठ जाती
है
बड़े-बूढे कुएँ में नेकियाँ क्यों
फेंक आते हैं
कुएँ में छुप के आख़िर क्यों ये नेकी
बैठ जाती है
नक़ाब उलटे हुए जब भी चमन से वह
गुज़रता है
समझकर फूल उसके लब पे तितली बैठ जाती
है
सियासत नफ़रतों का ज़ख़्म भरने ही
नहीं देती
जहाँ भरने पे आता है तो मक्खी बैठ
जाती है
वो दुश्मन ही सही आवाज़ दे उसको
मुहब्बत से
सलीक़े से बिठा कर देख हड्डी बैठ जाती
है
भरोसा मत करो साँसों की डोरी टूट जाती
है / मुनव्वर राना ग़ज़ल/शायरी
भरोसा मत करो साँसों की डोरी टूट जाती
है
छतें महफ़ूज़ रहती हैं हवेली टूट जाती
है
मुहब्बत भी अजब शय है वो जब परदेस में
रोये
तो फ़ौरन हाथ की एक-आध चूड़ी टूट जाती
है
कहीं कोई कलाई एक चूड़ी को तरसती है
कहीं कंगन के झटके से कलाई टूट जाती
है
लड़कपन में किये वादे की क़ीमत कुछ
नहीं होती
अँगूठी हाथ में रहती है मँगनी टूट
जाती है
किसी दिन प्यास के बारे में उससे
पूछिये जिसकी
कुएँ में बाल्टी रहती है रस्सी टूट
जाती है
कभी एक गर्म आँसू काट देता है चटानों
को
कभी एक मोम के टुकड़े से छैनी टूट
जाती है.
उनसे मिलिए जो यहाँ फेर बदल वाले है /
मुनव्वर राना ग़ज़ल/शायरी
उनसे मिलिए जो यहाँ फेर-बदल वाले हैं
हमसे मत बोलिए हम लोग ग़ज़ल वाले हैं
कैसे शफ़्फ़ाफ़ लिबासों में नज़र आते
हैं
कौन मानेगा कि ये सब वही कल वाले हैं
लूटने वाले उसे क़त्ल न करते लेकिन
उसने पहचान लिया था कि बग़ल वाले हैं
अब तो मिल-जुल के परिंदों को रहना
होगा
जितने तालाब हैं सब नील-कमल वाले हैं
यूँ भी इक फूस के छप्पर की हक़ीक़त
क्या थी
अब उन्हें ख़तरा है जो लोग महल वाले
हैं
बेकफ़न लाशों के अम्बार लगे हैं लेकिन
फ़ख्र से कहते हैं हम ताजमहल वाले हैं
तुम्हारे पास ही रहते न छोड़ कर जाते
/ मुनव्वर राना ग़ज़ल/शायरी
तुम्हारे पास ही रहते न छोड़ कर जाते
तुम्हीं नवाज़ते तो क्यों इधर-उधर
जाते
किसी के नाम से मंसूब ये इमारत थी
बदन सराय नहीं था कि सब ठहर जाते
रोने में इक ख़तरा है तालाब नदी हो
जाते है / मुनव्वर राना ग़ज़ल/शायरी
रोने में इक ख़तरा है, तालाब, नदी हो जाते हैं
हँसना भी आसान नहीं है, लब ज़ख़्मी हो जाते
हैं
स्टेशन से वापस आकर बूढ़ी आँखे सोचती
हैं
पत्ते देहाती होते हैं, फल शहरी हो जाते
हैं
गाँव के भोले-भाले वासी, आज तलक ये कहते हैं
हम तो न लेंगे जान किसी की, राम दुखी हो जाते
हैं
सब से हंस कर मिलिए-जुलिए, लेकिन इतना ध्यान
रहे
सबसे हंस कर मिलने वाले, रुसवा भी हो जाते
हैं
अपनी अना को बेच के अक्सर लुक़मा-ए-तर
की चाहत में
कैसे-कैसे सच्चे शायर दरबारी हो जाते
हैं
Munawwar Rana shayari in hindi keywords
munawwar rana shayari, munawwar rana ki shayari, munawwar rana maa shayari, munawwar rana maa, munawwar rana poetry, munawwar rana shayari in hindi, munawwar rana on maa, munawwar rana sher, rana shayari, munawwar rana rekhta, munawwar rana best shayari,munawwar rana shayari on life,maa shayari munawwar rana,munawwar rana shayari on politics in hindi,munawwar rana shayari on bachpan,munawwar rana shayari on beti,munawwar rana ghazal,munawwar rana shayari on mother,munawwar rana quotes,munawwar rana maa shayari in hindi,munawwar rana maa shayari in urdu,munawwar rana ke sher,munawwar rana shayari in urdu,munawwar rana dosti shayari in hindi ,munawwar rana shayari in hindi on maa,munawwar rana ki gazal,munawwar rana love shayari,munawwar rana poetry in hindi,shayari of munawwar rana,munawwar rana rekhta hindi,munawwar rana ghazal in hindi,best of munawwar rana,rana ki shayari,munawwar rana sad shayari,shayari on maa by munawwar rana,maa shayari by munawwar rana,munawwar rana maa shayari in hindi lyrics,munawwar rana famous shayari,munawwar rana love shayari in hindi,munawwar rana shayari on love in hindi,munawwar rana best,manohar rana ki shayari,munawwar rana poetry on maa,munawwar rana shayari on siasat, shayari on maa munawwar rana, manohar rana shayari, .shayari by munawwar rana. munawwar rana beti shayari, muhajir shayari urdu, munawwar rana maa shayari rekhta, munawwar rana maa lyrics, munawwar rana shayari in english,
Comments
Post a Comment